Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 67
________________ ६० कल्याण-मन्दिर स्तोत्र प्रभु स्वरूप अति अगम अथाह । क्यों हम सेती होय निवाह ।। ज्यों दिन-अन्ध उलको पोत । कहि न सके रवि-किरन-उदोत।। मोह-हीन जाने मन माँहि । तोहु न तुम गुण वरने जाहिं ॥ प्रलय पयोधि कर जल बोन । प्रगटहिं रतन गिने तिहिं कीन । : ५ : तुम असंख्य निर्मल गुणखान । मै मति-हीन कहूँ निज बान ।। ज्यों बालक निज बाँह पसार । सागर परिमित कहे विचार ।। जे जोगीन्द्र करहिं तप - खेद । .. तऊ न जानहिं तुम गुन-भेद ॥ भक्ति-भाव मुझ मन अभिलाख । ज्यों पंछी बोले निज-भाख ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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