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निकट रहत उपदेश ज्यों रवि ऊगत जीव
कल्याण- मन्दिर स्तोत्र
दोहा
: १६ :
सुन, तरुवर सब, प्रगट होत
: २० :
मुख
सुमन-वृष्टि ज्यों सुर करहिं हेट बीठ त्यों तुम सेवत सुमन-जन, बन्ध अधोमुख
w
: २१ :
उपजी तुम हिय उदधि तें, वानी सुधा-समान । जिहँ पीवत भविजन लहहिं, अजर-अमर पद थान ।।
छविहत होत वीतराग के
भयो अशोक । भुवि लोक ।
।
: २२ :
कहहि सार तिहुँ लोक को, ये सुर-चामर दोय । भाव सहित जो जिन नमे, तिहँ गति ऊरध होय ।।
सिंहासन गिरि श्याम सुतनु घनरूप लखि, नाचत
सोहि । होंहि ॥
: २३ :
मेरु- सम, प्रभु-धुनि गर्जत घोर । भवि - जन मोर ॥
: २४ :
अशोक - दल, तुम निकट रह रहत न
भा-मण्डल देख | राग विसेख ||
: २५ :
सीख कहे तिहुँ लोक को, यह सुर दुदभि-नाद । शिव-पथ सारथवाह जिन, भजहु तजहु परमाद ||
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