Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 71
________________ ६४ निकट रहत उपदेश ज्यों रवि ऊगत जीव कल्याण- मन्दिर स्तोत्र दोहा : १६ : सुन, तरुवर सब, प्रगट होत : २० : मुख सुमन-वृष्टि ज्यों सुर करहिं हेट बीठ त्यों तुम सेवत सुमन-जन, बन्ध अधोमुख w : २१ : उपजी तुम हिय उदधि तें, वानी सुधा-समान । जिहँ पीवत भविजन लहहिं, अजर-अमर पद थान ।। छविहत होत वीतराग के भयो अशोक । भुवि लोक । । : २२ : कहहि सार तिहुँ लोक को, ये सुर-चामर दोय । भाव सहित जो जिन नमे, तिहँ गति ऊरध होय ।। सिंहासन गिरि श्याम सुतनु घनरूप लखि, नाचत सोहि । होंहि ॥ : २३ : मेरु- सम, प्रभु-धुनि गर्जत घोर । भवि - जन मोर ॥ : २४ : अशोक - दल, तुम निकट रह रहत न भा-मण्डल देख | राग विसेख || : २५ : सीख कहे तिहुँ लोक को, यह सुर दुदभि-नाद । शिव-पथ सारथवाह जिन, भजहु तजहु परमाद || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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