Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 73
________________ कल्याण परिवार कल्याण-मन्दिर स्तोत्र :३०: तुम महाराज निर्धन निराश । तज विभव-विभव सब जग विकाश ।। अक्षर स्वभाव सुलिखै न कोय । महिमा भगवन्त अनन्त सोय ।। कर कोप कमठ निज वैर देख । तिन करी धूलि वरषा विसेख ।। प्रभु तुम छाया नहिं भई हीन । सो भयो आप लंपट मलीन ।। :३२: गरजन्त घोर घन अन्धकार । चमकन्त बिज्जु जल मुसलधार ।। बरसन्त कमठ धर ध्यान रुद्र । दुस्तर करन्त निज भव-समुद्र । वास्तु छन्द :३३ : मेघमाली-मेघमाली आप बल फोरि, भेजे तुरन्त पिशाच-गण नाथ पास उपसर्ग कारण, अग्नि-झाल झलकंत मुख, धुनि करत जिमि मत्तवारण ! कालरूप विकराल तन, मुण्ड-माल तिहँ कण्ठ ह निशंक वह रंक निज, करे कर्म दृढ़ गंठ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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