Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 31
________________ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र हे प्रभो ! जिस समय आप धर्मोपदेश करते हैं, उस समय आपके सत्संग के प्रभाव से वृक्ष भी अशोक हो जाता है, तब फिर मानव-समाज के अशोक-शोकरहित होने में तो आश्चर्य ही किस बात का ? जब प्रातःकाल सूर्य उदय होता है, तब केवल मानव-समाज ही निद्रा-त्याग कर प्रबुद्ध होता है यह बात नहीं, अपितु कमल आदि समस्त जीव-लोक ही प्रबुद्ध हो जाता है, विकस्वर हो जाता है ? टिप्पणी तीर्थकर भगवान् जब धर्मोपदेश करते हैं, तब देवता अशोक वृक्ष की रचना करते हैं और भगवान् उसके नीचे बैठते हैं। आचार्यश्री ने उसी भाव को कितने सुन्दर ढंग से वर्णित किया? प्रस्तुत श्लोक में आए हुए 'अशोक' शब्द के दो अर्थ हैंएक अशोक नामक वृक्ष और दूसरा शोक से रहित । इसी प्रकार 'विबोध' शब्द के भी दो अर्थ हैं-एक जागना और दूसरा विकसित-प्रफुल्लित हो जाना। 'अशोक' और 'विबोध' शब्द से संबंधित श्लेष अलंकार के द्वारा आचार्य ने अपनी काव्य-प्रतिभा का चमत्कार दिखाया है। आचार्यश्री कहते हैं कि हे भगवन् ! जब. आपके पास रहनेवाला वृक्ष भी अशोक होता है, तब आपके श्रीचरणों का सेवक मनुष्य अशोक- शोकरहित हो जाए, सांसारिक प्रपञ्चों से मुक्त हो जाए, तो इसमें आश्चर्य की कौन-सी बात है ? मनुष्य तो विशेष जागृत प्राणी है, उस पर तो आपका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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