Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 62
________________ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र सदा बनी रहे । बस, यह ध्यान में रखना, मैं कभी भी आपकी भक्ति से वंचित न होने पाऊँ । यह है विनम्रता, सरलता ! यह है निष्काम भक्ति का उज्ज्वल चित्र ! यह है स्वार्पण की दिव्य - भावना ! इत्थं समाहित-धियो [ ४३ ] विधिवज्जिनेन्द्र ! त्वबिम्ब निर्मल सान्द्रोल्लसत्पुलक - कंचुकितांगभागाः । मुखाम्बुज - बद्धलक्ष्या, ये संस्तवं तव विभो ! रचयन्ति भव्याः ॥ [ ४४ ] - - जन कुमुद - चन्द्र ! प्रभास्वराः स्वर्ग - सम्पदो भुक्त्वा ! विगलित मल निचया, ते अचिरान्मोक्षं प्रपद्यन्ते || नयन - પૂ · - —युग्मम् हे जिनेन्द्र देव ! अटल श्रद्धा के द्वारा स्थिर बुद्धि वाले, प्रेमाधिक्य के कारण अतीव सघन रूप से उल्लसित हुए रोमांचों से व्याप्त अंगवाले तथा निरन्तर आपके मुख कमल की ओर अपलक लक्ष्य रखनेवाले, जो भव्य प्राणी आपकी विधि-पूर्वक स्तुति करते हैं, आपका गुणानुवाद करते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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