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कल्याण-मन्दिर स्तोत्र
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प्रभाव स्पष्टतः पड़ना ही चाहिए । परन्तु आश्चर्य है कि वृक्ष भी अशोक हो जाता है। आपकी महिमा तो सूर्य के समान है। प्रातःकाल सूर्य उदय होता है, तब केवल मनुष्य ही विबोधजागरण नहीं पाते हैं, अपितु कमल आदि स्थावर जीव भी विबोध--विकास को प्राप्त हो जाते हैं। महापुरुषों का प्रभाव वस्तुतः अलौकिक होता है। यह 'अशोक वृक्ष' नामक प्रथम प्रातिहार्य का वर्णन है।।
[ २० ] चित्रं विभो! कथमवाङ मुखवृन्तमेव,
विष्वक् पतत्यविरला सुर-पुष्प-वृष्टिः । त्वद्गोचरे सुमनसां यदि वा मुनीश !
गच्छन्ति नूनमध एव हि बन्धनानि ॥ हे भगवन् ! महान् आश्चर्य है कि आपके समवसरण में देवताओं द्वारा सब ओर की जानेवाली अविरल पुष्पवर्षा के पुष्प सबके सब अपने डंठल नीचे की ओर किए हुए ऊर्ध्वमुख हो पड़ते हैं। एक भी ऐसा पुष्प नहीं, जो ऊपर की ओर डंठल किए अधोमुख पड़ता हो ।
हाँ, ठीक है। मैं समझ गया। हे मुनीश ! जब भी कोई स-मन आपके पास आता है, तो उसके बंधन सदा नीचे की ओर ही खिसकते हैं, कभी भी ऊपर की ओर उभर नहीं सकते।
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