Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 35
________________ २८ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र पौराणिक अनुश्रुति है कि अमृत बहुत गहरे सागर से निकाला गया था। उसके लिए समुद्र-मन्थन का आख्यान पढ़ना चाहिए। हाँ, तो भगवान् की वाणी किस समुद्र से उत्पन्न हुई? यह वाणी जिन भगवान के हृदयरूपी गम्भीर समुद्र से उत्पन्न हुई है। भगवान् का हृदय साधारण जन-का छिछला हृदय नहीं है, वह अनन्त गम्भीर समुद्र है। भगवान् पर कमठ आदि दैत्यों के अनेकानेक भयंकर उपसर्ग आए, परन्तु भगवान् का हृदय जरा भी क्षुब्ध नहीं हुआ, यही गम्भीरता का सबसे बड़ा प्रमाण है। ___किंवदन्ती है कि अमृत को पीनेवाला प्राणी अमर हो जाता है, न उसे कभी बुढ़ापा आता है और न वह कभी मरता ही है । अमृत के लिए तो यह केवल कल्पना ही है । परन्तु भगवान् की वाणी का पान करनेवाला भक्त, तो वास्तव में अजर-अमर हो जाता है, मुक्त हो जाता है। मोक्ष पाने के बाद न जरा है, न मरण । मुक्त आत्मा सदा एक-रस रहती है । संस्कृत-साहित्य में श्रवण के अर्थ में भी पान शब्द का प्रयोग होता है। अतः वाणी का सुनना भी पीना है। यह 'दिव्य-ध्वनि' नामक तीसरे प्रातिहार्य का वर्णन है । [ २२ ] स्वामिन् ! सुदूरमवनम्य समुत्पतन्तो, मन्ये वदन्ति शुचयः सुर-चामरोघाः । येऽस्मै नतिं विदधते मुनि-पुंगवाय, ते नूनमूर्ध्वगतयः खलु शुद्ध-भावाः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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