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कल्याण-मन्दिर स्तोत्र हे नाथ ! आप दु:खी जीवों के प्रति वत्सल हैं, शरणागतों के प्रतिपालक हैं, करुणा के पवित्र धाम हैं, और जितेन्द्रिय पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ हैं।
हे महेश ! भक्ति-भाव के कारण विनम्र हुए मुझ सेवक पर अपनी दया-दृष्टि कीजिए और इस दुःख की जड़ को उखाड़ने में शीघ्र ही तत्परता दिखाइए ।
[ ४० ] निःसंख्यसार-शरणं शरणं शरण्य
मासाद्य सादितरिपु-प्रथितावदातम् । त्वत्पाद-पंकजमपि प्रणिधान-वन्ध्यो, __ वन्ध्योऽस्मि चेद् भुवन-पावन ! हा हतोऽस्मि ॥ हे भुवन-पावन ! आपके चरण-कमल अतुल बल के स्थान हैं, दुःखित-जनों की रक्षा करनेवाले हैं, शरणागतों के प्रतिपालक हैं, और कर्म-शत्रुओं को नष्ट करने के कारण विश्वविख्यात यश वाले हैं।
परन्तु, दुर्भाग्य है कि आपके इस प्रकार मङ्गलमय चरणों का अवलम्बन पा कर भी मैं ध्यान से शन्य रहा, अतएव अभागा फलहीन रहा। भगवन् ! खेद है कि मैं तो आपके चरण-कमलों को पा कर भी मारा गया !
टिप्पणी प्रस्तुत श्लोक में आचार्यश्री ने अपनी कितनी अधिक मर्म वेदना प्रगट की है। आज के भक्ति-भावना से शून्य मात्र क्रिया
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