Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 52
________________ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र ४५ जिसके समूह से समग्र आकाश भर गया था। परन्तु उससे आपका कुछ भी न बिगड़ा। और तो क्या, आपकी छाया भी मलिन न हुई । प्रत्युत उस धूल से वह हताश दुरात्मा स्वयं ही ग्रस्त हो गया, कर्मरज से मलिन हो गया । टिप्पणी भगवान पार्श्वनाथ जब राजकुमार थे, तब उन्होंने कमठ तापस को अहिंसा-धर्म का उपदेश दिया था और नाग-सर्प को जलने से बचाया था। बाद में कमठ देव बन गया और पार्श्वनाथजी दीक्षा ले कर मुनि बन गए। कमठ-दैत्य ने क्रुद्ध होकर तब भगवान् पर भयंकर उपसर्ग किया। प्रस्तुत श्लोक में इसी घटना का चित्रण किया गया है। आचार्यश्री कहते हैं कि भगवान पर कमठ ने धूल की वर्षा की, इससे तो वह स्वयं ही कर्मों की धूल से मलिन हुआ, भगवान् तो अध्यात्म-भाव में लीन रहने के कारण निर्मल ही रहे। संसार में देखा जाता है कि जो सूर्य पर धूल फेंकता है उससे सूर्य की कान्ति तो जरा भी मलिन नहीं होती, प्रत्युत वह धूल वापस फेंकने वाले के मुख पर ही आ पड़ती है। _ 'रज' शब्द के दो अर्थ हैं---एक धूल और दूसरा कर्म भगवान् पर धूल डाली, तो कमठ पर कर्म की धूल पड़ी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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