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कल्याण-मन्दिर स्तोत्र
मोती दिखाई देते हैं, वे मोती नहीं हैं, प्रत्युत चन्द्रमा के परिवारस्वरूप तारागण हैं। वे भी चन्द्रमा के साथ प्रार्थना करने आये हैं । चन्द्रमा के तीन रूप मन, वचन और शरीर की विधा भक्ति के सूचक हैं।
प्रस्तुत श्लोक के तीसरे चरण में जो ‘कलितोल्लसितातपत्र' हैं, उसके स्थान में 'कलितोल्छ्वसितातपत्र' पाठान्तर भी बोला जाता है।
यह 'छत्र-त्रय' नामक अष्टम प्रातिहार्य का वर्णन है।
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[ २७ ] स्वेन प्रपूरित - जगत्त्रय - पिण्डितेन,
कान्ति-प्रताप-यशसामिव संचयन । माणिक्य-हेम - रजत - प्रविनिर्मितेन,
सालत्रयण भगवन्नभितो विभासि ।।
हे भगवन् ! आप अपने चारों ओर के माणिक्य, सुवर्ण और रजत से बने हुए तीनो कोटों से बहुत ही भव्य मालूम होते हैं।
ये तीन कोट क्या हैं ? मानों आपके शरीर की कान्ति, आपका प्रताप और आपका यश ही तीनों जगत् में सर्वत्र फैलने के बाद आगे स्थान न मिलने के कारण आपके चारों ओर तीन कोट के रूप में पिण्डीभूत हो गया है, एकत्रित हो गया है।
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