Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 42
________________ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र टिप्पणी तीर्थङ्कर भगवान् के मस्तक पर देवताओं द्वारा तीन छत्र लगाए जाते हैं । ये छत्र श्वेतवर्ण के तथा चारों ओर मोतियों की झालर से युक्त होते हैं। यह भगवान् का 'छत्र-त्रय' प्रातिहार्य माना जाता है। । आचार्यश्री का भक्तिरस से परिपूर्ण हृदय उक्त तीन छत्रों के सम्बन्ध में कितनी सुन्दर कल्पना करता है, यह आप मूल श्लोक में देख चुके हैं। फिर भी विशेष स्पष्टीकरण के रूप में कुछ थोड़ा और लिख देना अप्रासंगिक न होगा। आचार्यश्री के कथन का यह भाव है कि भगवान् के मस्तक पर जो तीन छत्र दिखाई देते हैं, वस्तुतः ये छत्र नहीं हैं। यह तो चन्द्रमा है, जो तीन रूप बनाकर भगवान् की सेवा में उपस्थित हुआ है। .. चन्द्रमा क्यों और किसलिए उपस्थित हुआ है ? इसके उत्तर में आचार्यश्री का कहना है कि चन्द्रमा का अपना अधिकार प्रकाश करने का है। वह सदा से आकाश में उदित होकर संसार को प्रकाशित करता आया है। परन्तु भगवान् ने जब अपने केवल-ज्ञान के प्रकाश से सम्पूर्ण त्रिभुवन को प्रकाशित कर दिया, तब चन्द्रमा का क्या अधिकार रहा ? वह बेचारा अपने परंपरागत अधिकार से भ्रष्ट कर दिया गया। अतएव वह अपना अधिकार मांगने प्रभु की सेवा में तीन छत्रों का रूप बना कर आया है। छत्रों के चारों ओर झालर के रूप में जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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