Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 46
________________ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र लिए मस्तक झुकाता है, तो फूल-मालाएँ नीचे गिर ही जाती हैं । परन्तु आचार्यश्री इस साधारण-सी घटना को भी असाधारण शब्दचित्र में उतार रहे हैं। प्रश्न है कि फूल-मालाएँ रत्नों से जड़े हुए सुन्दर स्वर्ण-मुकुटों को छोड़ कर प्रभु के चरणों में क्यों आ गिरती हैं ? उन्हें मुकुट जैसे सुन्दर स्थान पर रहना क्यों नहीं पसन्द आता ? उत्तर है कि वे सुमन हैं । और जो सुमन होते हैं, उनका प्रभु के चरणों में अगाध प्रेम होता ही है। अतः वे अन्यत्र सन्तुष्ट ही नहीं रह सकते। श्लोक में आए हुए 'सुमन' शब्द के दो अर्थ हैं-एक पुष्प और दूसरा अच्छे मनवाले सज्जन पुरुष। सज्जन व्यक्ति प्रभु के चरणों से प्रेम करते ही हैं। अतः नाम-साम्य के कारण सुमन-फूल भी प्रभु के चरणों से प्रेम करते हैं। कल्पना की इतनी लम्बी उड़ान का गूढ़ भाव यह है कि प्रभु के चरणों में साधारण जनता तो क्या, बड़े-बड़े इन्द्र आदि देव भी नमस्कार करते हैं। वह नमस्कार भी कुछ साधारण नहीं होता, प्रत्युत श्रद्धा-भक्ति के साथ इतना झुक कर होता है कि मुकुटों पर शोभा के लिए डाली हुई फूल-मालाएँ भी प्रभु के चरणों में आ पड़ती हैं। [ २६ ] त्वं नाथ ! जन्मजलधेर् विपराङ - मुखोऽपि, यत् तारयस्यसुमतो निज-पृष्ठलग्नान् । युक्तं हि पार्थिव-निपस्य सतस्तवैव, चित्रं विभो ! यदसि कर्मविपाक-शन्यः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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