Book Title: Kalyan Mandir
Author(s): Siddhasen Divakarsuri, Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 9
________________ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र __ जो कमठ दैत्य के अभिमान को भस्म करने के लिए धूमकेतु के सामान थे, जो गुण-गरिमा के अपार सागर थे, जिनकी स्तुति करने के लिए अतिशय बुद्धिशाली देवता का गुरु स्वयं बृहस्पति भी समर्थ नहीं हो सका, आश्चर्य है-उन तीर्थपति श्रीपार्श्वनाथ भगवान् की मैं स्तुति करूंगा! टिप्पणी भगवान् पार्श्वनाथ जैन-धर्म के तेईसवें तीर्थङ्कर हैं। भगवान् जब राजकुमार थे, तो एक बार उस युग के बहुत बड़े कर्मकाण्डी तपस्वी कमठ को अहिंसा-धर्म का उपदेश दिया था और उसकी धूनी में से जलते हुए नाग-नागिन को बचाया था। इस पर वह तपस्वी बड़ा क्रुद्ध हुआ और भगवान से द्वेष रखने लगा। वह मर कर मेघमाली देव हुआ। इधर भगवान् ने राज्य-त्याग कर प्रव्रज्या ग्रहण की और वन में साधना करने लगे। कमठदेव ने वहाँ भगवान् को वर्षा आदि का बहुत कष्ट दिया, परन्तु भगवान अटल-अचल रहे । आखिर आध्यात्मिक बल के आगे पशुबल की हार हुई, और कमठ चरणों में गिरा । 'कमठस्मय-धूमकेतोः' पद से आचार्य ने उसी घटना की ओर संकेत किया है। धूमकेतु एक कुग्रह होता है । जब वह उदय होता है, तो संसार में सर्वनाश के दृश्य पैदा कर देता है। कमठ के मिथ्या अभिमान के लिए भगवान् वस्तुतः धूमकेतु ही थे। कमठ तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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