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कल्याण-मन्दिर स्तोत्र
बाहर कहाँ ? हम तैरने लगे तो झट हमारे अन्दर विराजमान हो गए । अतः सच्चे तारक तो हम हुए और यश ले लिया है आपने।
श्लोक के उत्तरार्द्ध में उक्त धारणा का बड़ा ही सुन्दर निराकरण किया है। मशक के अन्दर स्थित हवा मशक कों पार उतारती है या बाहर में स्थित मशक अन्दर की हवा को ? किस खूबी से यह उदाहरण दिया गया है। कमाल है ! कभीकभी अनोखे तारक अन्दर रह कर भी दूसरों को भव-सागर से पार कर देते हैं।
[ ११ [ यस्मिन् हर-प्रभृतयोऽपि हत-प्रभावाः
सोऽपि त्वया रति-पतिः क्षपितः क्षणेन । विध्यापिता हुतभुजः पयसाऽथ येन,
पीतं न कि तदपि दुर्धर-वाडवेन ॥ हे देव ! जिस कामदेव को जीतने में सुप्रसिद्ध हरि-हर आदि देव भी हत-प्रभ यानी पराजित हो गए, उसी त्रिभुवन-विजयी कामदेव को आपने क्षणभर में नष्ट कर दिया । महान् आश्चर्य है !
___ अथवा इसमें आश्चर्य की क्या बात है ? जो जल संसार के समस्त अग्नि-काण्डों को बुझाकर शान्त कर सकता है, उसी जल को समुद्र का प्रचण्ड वड़वानल जला कर क्या नष्ट नहीं कर देता है ? अवश्य कर देता है।
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