Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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________________ पंचम-परिच्छेद : हरिवंशपुराण और सूरसागर का कलापक्ष 256-323 प्रस्तावना : रसविधान [256]; वात्सल्य-रस [257]; शृंगार-रस [260]; हास्यरस [263]; करूण-रस [264]; रौद्र-रस [266]; वीर-रस [267]; भयानक-रस [268]; बीभत्स-रस [269]; अद्भुत-रस [269]; शान्त-रस [270] ; भक्ति [271]; छन्द-विधान [271]; हरिवंशपुराण में प्रयुक्त छन्द [271]; सूरसागर में प्रयुक्त छन्द एवं पद्धतियाँ [277]; (क) दोहा-पद्धति [278]; (ख) छप्पय-पद्धति [278]; (ग) दण्डक-पद्धति [279]; (घ) चौपाई-पद्धति [279]; अलंकारविधान [282]; (क) शब्दालंकार [283]; (ख) अर्थालंकार [287]; हरिवंशपुराण का वर्णन-कौशल [294]; प्रकृति वर्णन [294]; नारी सौन्दर्य वर्णन [296]; सूरसागर का वर्णन-कौशल [297]; हरिवंशपुराण और सूरसागर का काव्यरूप [299]; भाषा [306]; हरिवंशपुराण की भाषा [306]; सूरसागर की भाषा [308]; सूक्तियाँ एवं मुहावरे-(क) हरिवंशस्य सूक्तयः [311]; (ख) सूरसागर में प्रयुक्त मुहावरे व लोकोक्तियाँ [316] / षष्ठ-परिच्छेद : हरिवंशपुराण में श्रीकृष्ण सम्बन्धी नवीन उद्भावनाएँ 324-353 प्रस्तावना : जैन साहित्य में कृष्ण कथा एवं हरिवंशपुराण [324]; श्रीकृष्ण की वंश परम्परा [325]; श्रीकृष्ण के चचेरे भाई अरिष्टनेमि [327]; श्रीकृष्ण का आध्यात्मिक राजपुरुष स्वरूप [332]; शलाकापुरुष श्रीकृष्ण [333]; श्रीकृष्ण के विवाह [336]; श्रीकृष्ण के सहोदर एवं गजसुकुमार [337]; श्रीकृष्ण के पुत्र [341]; द्रौपदीहरण एवं श्रीकृष्ण द्वारा उसे वापिस लाना [343]; श्रीकृष्ण का पाण्डवों पर कुपित होना [346]; श्रीकृष्ण की बहिन एवं दुर्गा [347]; महामुनि नारद-वृत्तान्त [348]; श्रीकृष्ण परिवार की जैन धर्म से दीक्षा [349]; निष्कर्ष [350] / सप्तम-परिच्छेद : हरिवंशपुराण और सूरसागर का परवर्ती . साहित्य पर प्रभाव एवं उपसंहार 354-388 * हरिवंशपुराण का परवर्ती साहित्य पर प्रभाव-(क) संस्कृत-कृतियाँ [354]; (ख) अपभ्रंश कृतियाँ [355]; (ग) हिन्दी-कृतियाँ [355]; जैन कृष्ण काव्य परम्परा में हरिवंशपुराण