Book Title: Jinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Author(s): Udayram Vaishnav
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________ विषय-सूची प्रथम-परिच्छेद : श्री कृष्ण काव्य परम्परा 1-64 प्रस्तावना : श्री कृष्ण का सार्वभौम व्यक्तित्व [1]; 'कृष्ण' शब्द की व्युत्पत्ति [4]; वेदों में श्रीकृष्ण [5]; उपनिषदों में श्रीकृष्ण [8]; महाभारत में श्रीकृष्ण [9]; पुराणों में श्रीकृष्ण [13]; कृष्ण और क्राइस्ट [18]; आभीरों के बालकृष्ण [20]; संस्कृत साहित्य में श्रीकृष्ण [22]; कृष्ण भक्ति उद्भव और विकास [25]; हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्ति काव्य [30]; वल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख कवि [30]; राधा-वल्लभ सम्प्रदाय के कृष्ण भक्त कवि [35]; गौडीय सम्प्रदाय के कृष्ण भक्त कवि [40]; सम्प्रदाय निरपेक्ष कृष्ण भक्त कवि [42]; प्रबन्धात्मक एवं मुक्तक शैली में रचित कृष्ण काव्य [45]; अवधी कृष्ण काव्य [49]; आधुनिक काल में कृष्ण काव्य [50]; जैन साहित्य परम्परा में श्रीकृष्ण [53]; आगम साहित्य में श्रीकृष्ण - [53]; आगमेतर साहित्य में श्रीकृष्ण [54] / द्वितीय-परिच्छेद : जिनसेनाचार्य एवं सूरदास का व्यक्तित्व एवं कृतित्व 65-116 (क) जिनसेनाचार्य एवं हरिवंशपुराण 65-84 प्रस्तावना : आचार्य जिनसेनं का व्यक्तित्व [65]; पुन्नाट संघ [67]; दिगम्बर सम्प्रदाय और हरिवंशपुराण [68]; हरिवंश के जिनसेन आदिपुराण के रचयिता से भिन्न [68]: हरिवंशपुराण का रचना काल [69]; तत्कालीन राजाओं का वर्णन [71]; काठियावाड़ के बढ़वाण में पुन्नाट संघ [73]; जिनसेन द्वारा निर्दिष्ट पूर्ववर्ती विद्वान [74]; जिनसेनाचार्य की गुरु-परम्परा [79]; हरिवंशपुराण का मूलाधार [80]; जिनसेनाचार्य की प्रमाणिक कृति : हरिवंशपुराण [81]; हरिवंशपुराण मुद्रण और प्रकाशन [84] / (ख) महाकवि सूरदास एवं सूरसागर 85-103 सूरदास जीवनवृत्त [85]; सूरदास नाम एक, व्यक्ति अनेक [85]; वंश परिचय [86]; जन्म तिथि-विद्वानों में मतभेद [87]; जन्म स्थान [89]; सूर का अन्धत्व [90]; सूर