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तो आश्चर्य ही क्या है ? उत्तर भारतवर्षमें जो नाटक-कपिनियाँ घर्तमान हैं उनके बदले यदि सदुद्देश्यसे स्थापित कोई हिंदी नाटक कंपनी होती तो क्या ही अच्छा होता ! हमारे युक्तप्रदेशमें दो एक हिन्दी क्लब स्थापित हो चुके हैं जिनके, हिन्दी भाषामें नाटक करना, इस उद्देश्यसे मातृ सेवाका प्रेम प्रत्यक्ष होता है। ऐसे समय उन्हें यह सूचित करना अनुचितः न होगा कि हिंदी भाषाकी सेवा तभी उत्तम हो सकेगी जब हम हिन्दीमें ऐसे नाटक लिखें और खेलें जिनसे लोगोंके अचार विचार-सुधर जायें और उनमें सच्ची महत्वाकांक्षा उत्पन्न हो । . अभी हिन्दीमें नाटक बहुत ही कम हैं; और जो इने गिने हैं उनमें ऐसे तो एकाध ही होंगे जिनको स्टेजपर खेलनेकी योग्यता प्राप्त हुई हो । नाटक लिखनेवालोंको मुख्यत: तीन बातोंका विचार करना पड़ता है। लोगोंकी रुचि, उन्नतिका मार्ग, और स्टेज । इनके अतिरिक्त
और भी कई सूक्ष्म बातोंका विचार करना ही पड़ता है परन्तु इन तीन बातोंका विचार छोड़कर जो नाटक लिखा जायगा उसका लोगोंपर कदापि अच्छा प्रभाव नहीं पड़ सकता । परन्तु महाकवियोंके कुछ ऐसे नाटक हैं जो हर समय और हर कालमें बड़ा अच्छा काम कर जाते हैं । इन्ही नाटकोंमें महाकवि शेक्सपियरका ' हेम्लेट ' प्रधानत: उलिखित होता है। उसी हैम्लेटका हिन्दी 'जयन्त' आज आप लोगोंकीसेवामें उपस्थित करते हैं। - हैम्लेट शोकपर्यवसायी (Tragedy) नाटक है । राज्य और स्त्रीके लोभसे मनुष्य अपने काबूके कैसा बाहर हो जाता है और अन्तमें किस दुर्गतिको प्राप्त होता है. इसका जैसा अच्छा, मनोरंजक और प्रभावशाली दृष्टान्त इस नाटकमें दिखायी देता है. वैसा अन्यत्र कदा
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