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म्युचरित्र ।
किसानी त ॥ ३ ॥ ध्याय महेश्वर सुनिल करि धरदास पाठा
साधू पास, फिरा साधा। तुमे, कारन को बतावो हमे ॥ ३० हंसे काहे तु का विवार, सो हमेको कहिये निरधार । साध कहें संमार विचित्र से देख हम आज चरित्र ॥ ३१ ॥ सात ने बेरी प्रतिश ६६ नैका है तूं बाल हृणियो जिसकुं सो है तात, कर्डे साधजी सी बात ॥ ३२ ॥ पोखो बैरीको निरधार, उड़ तेरी पतनीका जार। जो सुत्रधा तरी तिया साथ, तिसे इथे तूं अपने हाथ ६३ ॥ इह कु| तेर। है मात, इसे देखके सी बात । इह वृत्तान्त कुती जब सुनी, जो इइ जावी ज्ञानी सुनी ॥ ३४ ॥ तत्र उपजो कुत्तीको ज्ञान मनमे जान्यो गई। निधान । पग इसाग सुतको कियो, पुत्र ध्यायके धन सय लियो || ३५ ॥ मद्दे स्वर को आइ प्रतीत, पाष बैराग्य धरमकी रीत बैरागे बिड्डा तव धर्म, गति पाइ छूटी सब कर्म ३६ ॥ इह जगकी गति प्रजवो देख, रिता पुत्रको कारण पेस । सो है गति कर्म विचार, सुद्ध खना पावे पार ॥ ३१ ॥ ( दादा ) सुनके प्रजो ॥ ॥
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