Book Title: Jambu Charitra
Author(s): Chetanvijay
Publisher: Gulabkumari Library
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परदेशी राजाकी चौपाइ।
दियो मत खोटको ए, समझायो राजा मोटको ए । मोटो मारग वह जिन तणां ए, तो पाखंडी दबिया रहे ए ॥ ३५ ॥ जो मोटो समझे धरममें ए. तो घणा जीव पड़े शरममें ए। देखादेखी होय धरम ए, देखादेखी बांध करम ए ॥३६ ॥ धन २ केशी वाम ए, सान्या परदेशी ना काम ए। तिहां परखदा बैठी थाय ए, धरम देशना दे मुनिराय ए ॥ ३४ ॥ कही भागम' वाणी अमूप ए, जामें तीनुं लोकनुं सरुप ए । संघमा हर खत थाय ए; मुकायो परदेशी सय ए॥ ३० ॥ जिणे ऐसी जुगत बनाय ए, तिणसुं मिले वेगी मुगत ए। बेटे गुरांजीरा पाय ए, धरम श्रायो घणोई दाय ए॥ ३५ ॥ दोहा । उठण लागो तिण समे, गुरु कहे रहिजे तीक । पहिले रमणिक होयने पडे मति होय अरमणीक ॥ ४० ॥ कैसो रमणिक प्रजु, अरमणिक होय केम । वलितो गुरु एसो कहे, सांजलजो धरि प्रेम ॥ ४१ ॥ श्खु क्षेत्र ने अनखला, वागन नाटक सार । प्रवर्तता रमणिक होय, पडे धरमणिक नूपाल ॥ ४२ ॥ बाल १५ मी सिंधु रामन) देशी ॥ इकु रस हेतोरे
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