Book Title: Jambu Charitra
Author(s): Chetanvijay
Publisher: Gulabkumari Library

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Page 121
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परदेशी राजाकी चौपाइ। गम ॥ ६५ ॥ ढाल १६ मी, वेगे पधारो महेलथी, ए देशी ॥ गुरु वांदि पाला गया, पहुता नगर मकार । चार जाग किया राजनां, श्राप हो बेगे न्यार ॥ ६६ ॥ वैरागे मन वालीयो (ए श्रांकडी) सुणी साधांजी वाण । दया नाव दिखमें रुध्यो, चित्त ठिकाणे श्राण ॥ वै६७ ॥ परदेशी राजा हिवे, मोटी शाला कराय । अशनादिक निपजायने, कुर्बल दान दिराय ॥ वैः ६७॥ परदेशी श्रावक थयो, हुवो नवतत्वनो जाण । डीगायो डीगे नहीं, जो देव चलावे आय ॥ वै० ६ए ॥ पोसह पडिकमणां करे, शील व्रतनो नेम । सेठी पाले श्राखडी, देव गुरु धर्मसु प्रेम ॥ वै० ० ॥ चौदे प्रकारनो दान दे, साधाने निर्दोष। हाडमें जिन धर्मसुं, रंगे हरखे पात्र पोष ॥ वै०११॥ देव गुरु धर्म परिखने, मोटो समकित धार । सका कंखा ना करे, रूच्या प्रव. चन सार ॥ वै०७२ ॥ जिण दिनसुव्रत श्रावों, राजा देश भंडार । बल वाहन राणीयो जणी. न कहे थायो पधार ॥ वै०७३ ॥ नोकर चाकर परिवारशू, उतयों मननो राग । परजवनी खरची For Private and Personal Use Only

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