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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
सेती हो रहे उंचो सदाय ॥ वी०४७॥ काम कादौ करी उपनो, जोग पाणी हो वधीयो ने सेह । पिण न लीपे काम नोगशु, लगावे नहीं हो कासुं निवीड सनेह ॥ वीर० ४ए ॥ साधु समीपे बुऊसी, घर त्यागो हो होसी अणगार । पंच सुमति तीन गुपति सों, घोर तपस्या हो करसी अतिसार ॥ वीर० ५०॥ निर्दोष आहार जोगवे, जे जीते हो मोह माया ने मान । उत्कृष्टी करणी करी, उपजासो हो अन्ते केवल ज्ञान ॥ वीर० ५१ ॥ दोहा ॥ हिवे दृढप्रज्ञा केवली, जाणसी सरव उपाय । दरसण करीने देखसी, तीन लोकनो जाव ॥ ५५ ॥ गत आगत सब जीवना, पुन्य पाप अहनाण होय हुवे होशे सही. तीनो कालनो जाण ॥ ५३ ॥ अनाचार बगनां करे, प्रगट चवडे होय । दृढप्रज्ञानी केबली जणी, बानो रहे नहीं कोय ॥ ५४ ॥ जिण कारण जीव खप करे, उदय होसी थाय । इण सरीखो दिसे नहीं. तीन लोकने मांय ॥ ५५ ॥ ढाल २१ मी धरम हिये धरो ए देशी ॥ केवल ज्ञान पाया पढेरे, विचरसी कितो एक
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