Book Title: Jambu Charitra
Author(s): Chetanvijay
Publisher: Gulabkumari Library

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Page 126
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ परदेशी राजाकी चौपाइ । सिताबसुंरे, न यो राणी द्वेषरे । उजल करकस वेद उपनिरे, राख्या समता जाव विशेपरे ॥ जायजोरे समकित रस परिणम्योरे ॥ ७ ॥ जिन मारगने चाढी शोजरे, एसीतो विषमता कोइ विरला करेरे, जीत्या है तृष्णा मोहनें लोजरे ॥ जो० ८ ॥ आगेतो बीचमें अब वैरागनोरे, आयो मन मांहि अधिको जोसरे । वेदनी करम संच्या बै माहरेरे, नहीं राणीनो कोइ दोषरे ॥ जो० ए ॥ दाइ ज्वर तनमें एसो उपनोरे, बलतो हुवो बै सारी देदरे । औषध बेषध कोइ नवि कन्येोरे, राजा देदीशुं नाष्यो नेहरे ॥ जो० १० ॥ पुत्र नारीने सज्जन घर थकीरी, मुल न आयो माया मोहरे । हेल हकारो मुखसे ना कियोरे, धरमशुं लाग्यो अंतर नेदरे | ॥ जो० ११ ॥ मनरो तो जोस करीने वेगशुरे, छायो राजा पौषध शाला मांहिरे । जागा पडिलही लघु वड़ी नितरिरे, डाजादिक किया संथारा ठायरे ॥ जो० १२ ॥ आसन बेठा पूर्व दिशि मुख करीरे, लीया दोनुं माथे हाथ चढायरे । नमोत्थुणं कियो सिद्धां जणीरे, जब 1 For Private and Personal Use Only

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