Book Title: Jambu Charitra
Author(s): Chetanvijay
Publisher: Gulabkumari Library

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Page 128
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ परदेशी राजाकी चौपाइ । एहवो अकारज कीधोरे, जाइने गल ट्रंपो दीघोरे ॥ २० ॥ पुनः ढाल || पिण परदेशी यति क्षमा करीरे, राख्यो धरमसुं रुडो ध्यानरे । ऐसी क्षमा जो कोइ साधु करेरे, तेहने उपजे पूरण केवल ज्ञानरे ॥ जो० २१ ॥ तेरमा बेलानो ढुंतो पारणारे, घ्यालोयनिंदि निश्चल यारे । कालने अवसर मरण लदी कर रे, सुरयाज देव दुवो है जायरे ॥ जो० २२ ॥ पांचे परजाय करी अति दीपतोरे, पहिला देवलोक ततकालरे । क्षमाने करणी कधी अति घणीरे, ध्यरूप दिना में व्रतने पालरे ॥ जो० २३ ॥ इम निश्चय करी गौतम जाणजोरे, सुरयाज लहि देव कध एमरे । ज्योतिने क्रांति वधी बै एहनीरे, थेट नीजाया लीधा नेमरे ॥ जो० २४ ॥ दोहा ॥ वीर कहे सुण गोयमा, यह परदेशी राय । ततकाले सूर उपनो, नाटक कीयो आय ॥ २५ ॥ चार पढ्योपम उखो, देवो नाटक सान। सुर विमान परखद तणां, जाव कह्या वर्द्धमान ॥ २६ ॥ वलि गौतम पृष्ठा करी, विनयवंत घरी देत । सूरियाज स्थित पूरी करी, चवीने जासी केत ॥ For Private and Personal Use Only

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