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परदेशी राजाकी चौपाइ। १२३ थे मुगति विराज्या जायरे ॥ जो १३ ॥ बीजो नमुत्थुणं अरिहंता नणिरे, तीजा वलि केसी श्रमणने कीधरे। धरमाचारज मोटा माहिगरे, पूरब में श्रावकना व्रत लीधरे ॥ जो १४ ॥ हिवडां तो व्रत माहरे श्म हिज रे, नवरं विविध विशेषरे। श्हां तो में लेडं सोस आखडिरे, उहां तो आप रह्या देखरे ॥ जो० १५ ॥ पाप अगरा सघला पचखिनेरे, आहार चारे पचख्या जासरे । इष्टकांति काया करंडिया समिरे, वोसरावी हैं. लेवे श्वासोश्वासरे ॥ जो १६ कथाकारमें राणी म जाणीयोरे, रखे जीवपरो करे उपायरे । सुख समाधि पूजण मिसेरे. राजाने पूरो पाडुं जायरे ॥ जो १७ ॥ ढाल १॥ मी पेसानी ॥ राणी मांड्यो बेडपलाने शोकोरे, मारा वाला तणोरे विजोगारे । म्हारो कोइ नाम न लेजोरे, मुने दरसण देखण देजोरे ॥ १७ ॥ राणी एहवो कियो कूडोरे, उमरावाने कीधो पूरोरे । तिणे कपट एहवो केलध्योरे, म्हारो अबके हलो मेलोरे ॥ १५ ॥ म्हारे आडो परेच खींचावोरे, राणी मांहे गइ चालीरे,। इण
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