Book Title: Jambu Charitra
Author(s): Chetanvijay
Publisher: Gulabkumari Library
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११८
परदेशी राजाकी चौपाइ।
नणी, रात दिन रह्यो लाग ॥ वै० ४ ॥ बेलार नो पारणों, तपस्या करे बै अनङ्ग । मोक्ष जणी उठ्यो सही, करवा करमसुं जङ्ग ॥ वै० ७५ ॥ करडो हुँतो राजवी, पायो जिनवर धर्म । ज्यारे लागि रसायणा, एहवो हो गयो नर्म ॥ वै० ७६ ॥ गुण इत्यादिक घणां, जेम श्रावकमी रीत । केसी गुरु परतापथी, गयो जमारो जीत ॥ वै०७७॥ दोहा ॥ ज्यां लगि धर्म पायो नहीं,करतो मोटा पाप । संसार्याने न सुहावतो, पडती तेहनी गक ॥ ७ ॥ सूरिकता राणी इस्यो, हुतो नृपसुं प्यार । राणी नाम सुत नो दीयो, सूरिकंत कुमार ॥ पुए ॥ स्वारथनां सहु को सगां, जो जो इण संसार। किणविध विरचे कंतसुं, सूरिकंता नार ॥ ॥ कुण बेटा कुण पोतरा, कुण जार्याने जाय । स्वारथ लगि नेहा करे, परमारथ मुनिराय ॥ १ ॥ ढाल १७ मी विबियानी देशी ॥ दिवे राणी मन चिन्तवे, एतो नरम गयो पालरे । सार करे नहीं राजरी, मोने लाग्यो कुण जंजालरे । तुमे जुओरे स्वारथरा सगा ॥ ७ ॥ केसी श्रमण ज्युं आयने, श्ण
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