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परदेशी राजाकी चौपाई।
ज्यांरा पाका खेतोरे, रसरो बहु चालारे, वहे घाणीरा नालारे, नित काक ऊमालाहो, जीड लगी रहेरे ॥ ४३ ॥ इकु पीलीअरे, खाजेने दीजेरे, रस बहुला पीजेरे, देखी २ ने रीजरे, जब मागे रमणिक हो, खेत सुहामणरे ॥ ४ ॥ खाइ पाइने थायारे, ठिकाणे लगायारे, सुना हुवा खेतोरे, मांहे कडे रेतोरे, अरमणिक इण हेतो हो, राजा में कह्यारे ॥ ४५ ॥ बागा गहरी बायारे, मांजरीया यारे, घणो फूल्यो फलीयोरे, फल नारे ढलीयोरे, जब लागे रमणिक हो, बाग सुहामणोरे ॥४६॥ केश श्रावने जावरे, बहु चीजां खावेरे, पामे झतु शातारे, पान नीलांने रातारे, श्ण कारण रमणिक हो, लागे सुहामणरे ॥ ४ ॥ फागुण वाय वागेरे, पान जडवा लागेरे, निकल गया डासारे, फल नहीं रसालारे, अति काला डंकाला हो, बाग अशोजतारे ॥ ४ ॥ नटवानी शालारे, गावे गीत रसालारे, बाजा ताल बजावरे, बहु देखन थावरे, नटशाला सुहावे हो, राजन् अति घणीरे ॥ ४ ॥ जससुं मुख नावरे, हरताल लगावरे, स्वांग
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