Book Title: Jambu Charitra
Author(s): Chetanvijay
Publisher: Gulabkumari Library
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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
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बोडी जासी प्राण, ढेरी कर देइ राखरी ॥ चे० ९६ ॥ नवि० जबलगि जीय घट मांद, तबल गि इन्द्रिय साबती | चे० । जिहां लगे रोग न आय, राखो धरमनी जाबती ॥ च० ए ॥ जवि० सत गुरुनी ए शीख, ए अवसर मति चूकजो । चे० | पर निन्दा परनार, तिए नेडा मति दुकजो || चे० ए८ ॥ जवि० तजे सगाने सयण, बोडे धन संच्यो हाथो । चे० । तजे लियाने पुत्र, न तजे धर्म जगनाथनो ॥ चे० ए० ॥ जवि० करजो कतु करतुत, मनुष तणो जव पायने । चे० । मति लीयो नरक ना दुःख, परनी चुगली खायनें ॥ चे० ४०० ॥ जवि० हाथी घोडा ने हाट, हांका हां रहसी सही । चे० । पाढे होवेला उचाट, गरज कांइ सरे नहीं ॥ चे० १ ॥ जवि० थ न चाले साथ, नारी न चाले गेहिनी । चे० । सघली रही पढ़ी वात, बोडी जाइ निज देहडी ॥ चे० २ ॥ जवि० जबलग स्वारथ होय, तबलग मुख जी जी करे | चे० । स्वारथ. सरीयां जोय, सामो देख्यां लड पडे ॥ ० ३ ॥ जवि० एह संसारनो रुप, देखिनें
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