Book Title: Jambu Charitra
Author(s): Chetanvijay
Publisher: Gulabkumari Library

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Page 110
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ परदेशी राजाकी चौपाइ। बाजी रह्या धधकार, बत्तीस विध नाटक होय सार । विलसे कामादिक बहु जोग, पुन्य थकी सब मिलीयो संजोग ॥ २ ॥ हिवे ते लोह वाणीयो श्राय, लोह लइ घर पेठो मांय । लोह वेचीयो गण्डी खोल, आयो थोडो तेहनो मोल ॥ ७२ ॥ थोडा दिनमें दीयोरे निमय, लारे' कुनार गई ते खाय । घरमांहि आश् दारिफ नूख, तेहि थकी देहि गइ सुक ॥ ३ ॥ एक पावलो लारे रखाय, तेहना फूलीचणारे मंगाय। फीरतोश शहर मकार, ते पायो साथ्याके घार ॥ ५ ॥ मदेव साहमा उंचो लाल, देखि २ तन उठे जाल । ज्यु देखे त्युं सोचज करे, पण सोच्यां अब गरज न सरे ॥ ५ ॥ साथ्यां तणी न मानी शीख, हाय पडी मुजने अब धीक । अधन्य अपुन्य पाप मुझ घणो, काली पीली अमावस जाणो ॥ ६ ॥ पूरंत पंत लक्षण मुऊ मांय, लज्जा दया रही नहीं कांय । पश्चाताप करे मन घणो, वचन न मान्यो साथ्यां तणो ॥ ७ ॥ तेहनी परे समजी तुं राय, विन समके पाले पडताय । प्रश्न अग्यारमांनो उत्तर एह, साजली For Private and Personal Use Only

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