Book Title: Jambu Charitra
Author(s): Chetanvijay
Publisher: Gulabkumari Library

View full book text
Previous | Next

Page 109
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परदेशी राजाकी चौपाइ। ते खाण रुपानी लगा। सब तांबो तज रुपो लीयो, उन मुरखनो हठ नहीं गयो ॥ १३ ॥ आगे दीठी सोना खाण, तिमहीज दीठी रत्नारी खाण । डाल दियो सब पीबलो नार, लीना बांधी रत्न अपार ॥ ४ ॥ लोह वाणीयो टेक न तजे, सब समजावे लोह न तजे। लोह रतननो अन्तर बह, अबलग सरिखा होशे सह ॥ ७५ ॥ लोह वाणीयो बाल्यो वाय. बोडे मेले करे बलाय । में तो नार लीयो सो लीयो, तुमने बोड न मेल न कीयो ॥ १६ ॥ मूढ वाणीयो इणविध कही, तुमें मान कलु दीसे नहीं। जब साथ्यां सघला जाणीयो, से साचु बोख्यो लोह वाणीयो ॥ ७ ॥ साथ्यां शिख दीधी घणी, पिण ते मुरखे नेक न गणी। सघला पाला आया तिणवार, पहुता आपण घरबार ॥ ७ ॥ नारी माल लाया ते घरे, शेक रतननो विक्रय करे । तेहना थाया बै बहु दाम, दाम थकी सुधरे सहु काम ॥ ए ॥ गइलो मनुष्य कोश् थाय, धनथी बुद्धि पूसरी आय । सात खणा कीना श्रावास, नरनारी बेग सहु पास ॥ ७० ॥ मादल For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135