________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०४
परदशी राजाकी चौपाइ।
श्रेम । राजा तुं पडतावसि, लोह वाणीया ओम ॥ ६५ ॥ स्वामी कुण लोह वाणीयो, पबितायो कहो केम । स्वामी कहो कृपा करी, जो मुऊ वरते देम ॥ ६६ ॥ ढाल १५ मी चोपईनी देशी॥ गुरु बोल्या राय सांजल एह, प्रश्न अग्याग्मांनो उत्तर जेह । केश्क वाणीया धनरी चाहनेला हुश् चख्या अटवी मांह ॥ ६७ ॥ चलतां अयो एक उद्यान, तामें देखी लोहा खान । निरधननें होइ लोहा धन्न, तेहने देखी हरख्या मन्न । ६० ॥ जाणे गयो हम दारिज दूर. सबने लोह उपाड्यो पूर । धनना अरथी श्रागर गया, तांबा खान देखी हरखीया॥६५॥ सरही लोह दिया निहां डाल, तांबो बांध लीयो ततकाल । तिणमें लोह वाणियो क, लोहनें सेंग कीयो विशेष ॥ ७० ॥ साथी बोल्या तिणसु श्रेम, बांडे नहीं लोह तुं केम । तांबासु लोह थावे घणो, जार बोडिदे लोहा तणो ॥ ११ ॥ प्रत्युत्तर जाग्वे तिणवार, दूर थकी में लायो नार । में कीधी खप यु ही जाय. तिण कारण बोडं नहीं जाय ॥ ७॥ तिहाथ चलीने आगे गया, तब
For Private and Personal Use Only