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परदेशी राजाकी चौपाइ। १०१ दोहा ॥ गुरु प्रते राजा कह्यो, थे अवसरना जाण । गुरु उपदेश जलो कह्यो, निपुण गुणानी खाण ॥४१॥ शरीर मांहिथी काढीने, समरथ को अतीव । थांवला प्रमाण मो हाथमें, जूदा दिखावो जीव ॥ ४५ ॥ ढाल ११ मी जगत गुरु त्रिशला नन्दन वीर, श्रेदेशी ॥ तिणे कालने तिणे समेजी, राय प्रदेशीने पास । बृद तणाजे पानडाजी, वाय हलावे तास ॥ ४३ ॥ मुनिसर उत्तर दीधो प्रेम ॥ जेहना प्रश्न पुडियोजी, निष्फल जाय कहो केम ॥ मु०४४ ॥ मुनिवर पूजे रायने जी. थे कोण हिलावे पान । देव असुर नाग किन्नरा जी, जात गंधर्व प्रधान ॥ मु० ४५ ॥ राय कहे नहीं देवता जी, जात गंधर्व न हिलाय । वृक्ष तणा थे पानडा जी, हिलावे वायुकाय ॥ मु० ४६ ॥ गुरु कहे तुं देखेय ने जी, रुप सहित वायुकाय । कर्म लेश्या वेद सहित ने जी, राग मोह कहेवाय ॥ मु० ४७ ॥ राय कहे देख्यो नहीं जी, तव गुरु बोल्या श्रेम । वायु रुप देखे नहीं जी, तो जीव दिखाउं केम ॥ मु०४७ ॥ बदमस्थ देखे नहीं जी, दश
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