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जम्छु चरित्र |
करते यथा । जम्बू कड़े कौन द्विज धीय, तब लिय बोली सुन मुऊ पी ॥ एए ॥ श्रीपुर नामे दे इक माम, सिरी सार राजाको नाम । तिसको बिसन पड़ाई श्राय, नइ कथा नित सुनता राय ॥ ४०० नगर लोक सब कहते कथा, अपनी २ वारी यथा कथा एक नित सुनते राय, जिसकी वारी सो कहि जाय ॥ १ ॥ इक दिन बूढ़ा ब्राह्मण तहां, तिसकी चारी या जिहां | उससे कथा कही नहि जाय बूढ़ा जया शक्ति नहि काय ॥ २ ॥ तद बेटी को ब्राह्मण कही, मेरी बदले तूं जा सही । कथा राय को कहियो जाय, पिता बचन शिर लियो चढ़ाय ३ ॥ ब्राह्मणकी बेटी तव गई, सनमुख जा राजाके जइ । कथा एक तुम सुनियो राय, पिता हमारा । ब्राह्मण थाय ॥ ४ ॥ पुत्र एक ब्रानका जिदां किया सगाई मेरी तिहां । उड़ ब्राह्मणका बेटा जवें सूरत मेरी देखन तवें ॥ ५ ॥ मेरे घरमे याया तेद, एकाकी मै रहती गेइ । उसे देख मै आदर दिया, श्रागत जगत बहु विश्व किया ॥ ६ ॥ जले जसे व्यञ्जन पकवान, उसे जिमाया मैने ध्यान । त्रिस-हुवा जोजन कर जवें, मुजे अकेली देखा तवें
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