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जम्नु चरित्र ।
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७॥ रूप देख मोया तेवार, मुजसो जोग किया निरधार । पीने घड़ी दोर जव सुवा, झूल रागम तव तमुवा ॥ ७॥ तव सिसको मैंने क्या किया गढ़ा खोदके गाड़ी दिया । पर वयात न जाने कोय, राजा पसें सांची होय ॥ए॥ तव ब्राह्मणकी बेटी कहे, बहुत कथा नृप सुनते रहे । उह सब सांची है जो बात, तो इह सांची है विख्यात ॥१॥ असा कहिके घरको गइ, नृप जाना सब थैसी नइ उस दिनसो राजाजी जया, बोड़ दिया सब सुनना कथा ॥ ११ ॥ तैसे खामी तुमने कही, कल पित बातज श्द सब सही । मै नही मानो एसब बात तव जम्बू बोले विख्यात ॥ १२ ॥ (दोहा) हूँ ललिताङ्ग समो नही, जो मानो तुम बात। त्रिया कहे ललिताङ्ग कुन, ते नापो अवदात ॥ १३ ॥ तव जम्बू स्वामी कहें, जरत क्षेत्रमे सार । बसंत पुर नगरी तिहां, सुखिया लोक अपार ॥ १४ ॥ सप्तप्रजव राजा जिहां, रूपवती तिय नाम । ते पटराणी जूपकी, सोने नृपके धाम ॥ १५ ॥ रूप वती राणी तिहां, गोखें बैठी आय । खलिता कमर सादका, देखी सुन्दर काय ॥ १६ ॥ राणी
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