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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
राय कहे दिल नावे, थे कहो झानने मान । ६६ ॥ वलि सांजलो स्वामी, तरुण पुरुष होवे सार । समरथ होई वाहिवा, लोहादिकनो जार ॥ ६७ ॥ तेहिज होई वृद्ध जो, जरी देह निरधार । लकडी लेई हिंडे, पड्या दांतने दाढ ॥ ६०॥ चाले मांदो नूखे, तृषाय पुरवल देह । लोहादिक वाहिवा, समरथ होतो तेह ॥ ६ ॥ तो सरधतो स्वामी, जीव काय जूदा एह । नहींतर नहीं मानु, बगे प्रश्न सुनेद ॥ ७० ॥ उत्तर गुरु नाख, कोईक नर राजान। होय चतुर विचक्षण, ते वलि तरुण जुवान ॥ १ ॥ नवां डोरी बीका, वांस करंडक जान । ते नार उपारने, जाणे विधि विज्ञान ॥ ७ ॥ ते उपारन समरथ, राजन् ! ते किम थाय। हाई स्वामी समरथ, वलि गुरु बोल्या वाच ॥ ३ ॥ ते नर होवे तुरनो, कावड डारो सुलकाय । करंडक सुलकावे, वांस लकडी जीव खाय ॥ ४ ॥ समरथ होवे वहेवा, लोहादिकनो बोऊ। राय कहे नहीं समरथ, जुना उपगरण होय॥ ३५ ॥ होय सब विधि समरथ, जुना उपगरण जाय । तो
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