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परदेशी राजाकी चौपाइ।
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बोक उपाडे, राय कहे नहीं बास ॥ १६ ॥ उपगरण लांजे, वलि तो गुरु कहे चोज । बुढो उपाडे, होन इन्डि वलि खोज ॥ ७ ॥ तिणसो नहीं समरथ, वहेवा कावड जार । जुदा जीव काय बै, शंका म करि लगार ॥ ७ ॥ राय कहे ज्ञान बुद्धिसों, देत मिलावो श्याम । पणजीव काया जिन्न, दिल नहीं बेसे श्राम ॥ ए ॥ दोहा ॥ पूरे प्रश्न सातमो, श्रीगुरुनें राजान । प्रत्युत्तर दे किण विधि, ते सुणजो धरि ध्यान ॥ G० ॥ ढाल ए मी धरम मङ्गल महिमा निलोए, एचाल ॥ एक दिवस जरी परखदा, बैगे थो सना मांह । नगर गुतोए चोरटो, सोप्यो मुक आन । प्रश्न पूजे नर सातमो ॥ ए टेक० १ ॥ ज्ञान प्राप्तिने काज, सदगुरु मोटा जेटीया, तारण तरण जहाज ॥ प्र० ७२ ॥ में चोर जीवतो तोलीयो, पढे कन्यो उपाव । गल मसोसीने मारीयो, नहीं शस्त्र लगाय ॥ प्र० ३॥ मारीने फिर तोलियो, घट्यो वढ्यो न लिगार। तिण कारण में जाणीयो, जीव काया नहीं न्यार ॥ प्र०७४ ॥ चोर मुवाने जीवते, फेर पडतो स्वाम।
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