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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
पुजननी, बाहेर निकल्यो जाय। ए जीव प्रतिहत, ते कहो किम लखाय ॥ ४६ ॥ परवतादिक जेदके, जीव निकलीनें जाय । तिए कारण सरधो, जुदी जीवन काय ॥ ४७ ॥ वलि बोल्यो नरपति थे कहो देत लगाय । निरमल बुद्धि याहरी, पण नावे मुऊ दाय ॥ ४८ ॥ वलि एक दिन स्वामी, बैगे मोटे मंडाण | कोटवाल मुऊ ने, सोध्यो चोर एक यान ॥ ४५ ॥ तेहने मारी ने, घाल्यो कुंजी जाए । काठो बीडिने राख यो, पांडे काढ्यो खान ॥ ५० ॥ ति मांहि स्वामी कीडा, पडिया दिवा सोय । ते पेठा किए विधि, छिद्र न दिवो कोय ॥ ५१ ॥ जो बि पडंनो, तो मानतो मैं दोय । नहीं तो सुखिमी, साव मत बे मोय ॥ ५१ ॥ गुरु कहे राय दिवां लोह, धर्म | हां दिवो स्वामी, अगनि
वरण होय लान ॥ ५३ ॥ वह्नि सघ परिणती, पेत्रि मांहि संनाल । कोई बिप्र पड्यो तिहां, किम हुवा काखोकाल ॥ ५४ ॥ राय कहे बि वि दुबो, तब गुरु बोया एम । जीव परवत जिवे, कुंभी बिद्र दुबे केम ॥ ५५ ॥ सरधो
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