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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
जडीयो ढांको, संधि न राखी कांय ॥ ३६ ॥ लोह कुंजी लोह ढांकणो, सीसा संधि नराय । रखवाला सुधि राखीया, काल किसी विध जाय ॥ ३७ ॥ पाठे कुंजी ढांकणो, में खोल्यो मुनि सोय | चोर मूवो श्रतम गयो, बि दुवो नहीं कोय | ३८ ॥ निकलतो देख्यो नहीं, दुवो न कोई बेक । काया जीव जुदा २. हुं किम मानुं टेक ॥ ३७ ॥ जीव काया एकीज है, यह म्हारो मत साच । एहवी बात सुणी करी. बोल्या मुनिवर वाच ॥ ४० ॥ ढाल ८ मी सुख कारीनी चाल ॥ सांजली परदेशी, कुडागार एक साल । बाहिर मध्य लिपी, ठंडी गंजीर विशाल ॥ ४१ ॥ मांई वायु न पैसे, श्राडा बजर किवाड । कोई ढोल लेईने, नर पैसे तिणवार || ४२ || पेठा पढे ढांके किवाड, बिप्र नवि राय । पक्को काम ज्युं कीधो, चूना पिठी लगाय ॥ ४३ ॥ ते मांहि बजावे, मोटे शब्द मेरी ढोल । ते बाहिर सुणे के नहीं, गुरु कड़े राजा बोल ॥ ४४ ॥ ते सुणिये स्वामी, एम बोल्यो नृप वाच | सांजलि गुरु जाखे, बड्यो कोई राय ॥ ४५ ॥ जेम शब्द
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