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अम्बु चरित्र ।
ती मोकली, तेड़ायो निज गेट् । ललिताङ्ग कुमर यावियो, राणी करती नेह ॥ १७ ॥ तिन अवसर
पालकी, श्रावनकी सुन बात । तब राणी लखिताको, कही बचन जयखात ॥ १० ॥ शीघ्र जायके पिरो, मोरीमे बहु कीच । कुमर जाय बिपियो तिहां, टक्यो मोखा बीच ॥ १९ ॥ ( चौपाइ ) बिषे जाय ललिताङ्ग कुमार. मोरी मध्य रहें निरधार। टके मोखा मोरी बिच, जिहां बहुत है जूठा कीच ॥ २० ॥ टिपे रहे कोक दिन तिहां जूना खाना खाता जिहां | जीया जूग खाके जयें हुवा वला देही तवें ॥ २१ ॥ इक दिन वर्षा तु तव जया, पाणी मोरीमे बहु गया । चला प्रवाद जोरसुं नीर, वह थाया मोरीके तीर ॥ २२ ॥ निकला बाहिर कुमर सुजान, तव ते खाया अपने थान निजघर थाया दुख सब गया, फिर शरीरसुं ताजा जया ॥ २३ ॥ इक दिन सवारी कर जला बड़ी जलुससुंकुमर चला । बजार होके व्याया ज फिर राणीने देखा तवें ॥ २४ ॥ रूप देखके मोदी सही तव राणी ती सो कही। ले खावो ललिताङ्ग कुमार, सुनके दूती गइ तेवार ॥ २५ ॥ तुमको
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