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जम्बु चरित्र।
हारियो, बनिता ना नाम ॥ ७० ॥ पुत्र अरइनक तेहने, करे साधको सङ्ग। धर्म देसना सांजली, लगे धर्मके रङ्ग ॥ १ ॥ शद्धि तिहुं जन गंडिया, दिवा लिया जाय। सुतने निदा गोचरी जान न देवे माय ॥ १२ ॥ (चौपाइ) तिहुं जन दिदा पाले सदा, मात पिता सुत अरणक तदा थरणक पिता काल बस थया, दत्तमुनि देवलोके गया ॥७३॥ गयो तात सुरलोके जवे, माता थरणक रहते तवे । अरणक मुनि गोचरी गया, उस काल गरमी बहु नया ॥ ४ ॥ परिसद मुनि अन सहतो तिहां, विवहारी घर आयो जिहां । गेह निकट मुनिवर तव गया, बाया देखी ऊना थया ७५ ॥ बिवहारी की नारी तिहां, बैठो मन्दिर गौखे जिहां। पति परदेश गयो व्यापार, गृहमे रहे बिरहनीनार ॥४६॥ तिहां ऊना साध सकमाल, अरणक मुनिने देखी वाल । हरषित नश् साधको देख, काम बिकल्प जइ बिसेष ॥ ७ ॥ निग्रंथ साधू तेड़ी घरे, कहें स्वामी संयम का धरें ए योवन निर्मल डे काय, संयम युक्ति नही मुनि राय ॥ ७० ॥ अयुक्त काम कियो अणगार, संयम
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