________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६
परदेशी रानाको चौपाइ ।
अग्नेि, मनमे धास्यो थाम । सेतंबिकानी बिनती करिज केशी साम ॥ २२ ॥ मेतो जिन धर्म पामियो, मोटा गुरु संजोग । सेतंबिका गुरु पांगुरे तो समजे गजा लोग ॥२३॥ एसी करि विचारणा रथ बैसी चित जाय । किन बिध करे जतावणी, ते सुनज्यो चितलाय ॥ २४ ॥ इच्छामुनि बैठा रहे श्ठा करे बिहार । पिण श्रावकने बीनती, करि वांनो व्यवहार ॥ २५ ॥ समऊनहारा समऊसें, निश्चै नय इम जान । पिण साधु तारक कह्या, ए व्यवहार प्रमाण ॥ ३६ ॥ हेतु युगत दृष्टांत दे सारै घणानो काज । पर उपगारीश्म कह्या, तारण तरण जहाज ॥ २७ ॥ सुबुधि नाम प्रधान जिम फरसो अह जल कीध। जितशत्रु राजा नणी, श्रावकना ब्रत दाध ॥॥लयो राजानो नट णो, सुन सुत्रनी बात । केशी गुरूने जेटीया, जव हीरो लागो हाथ ॥२१॥ अव्य हीरा पाया थका श्ण नव माही सुख । ज्ञान हीरा पाये मिटे, नव शानंतना मुख ॥ ३० ॥ इंसादिक देव लोकना पुद्गलिक सुख जोय। निरञ्जन निराकारना, यात मीक सुख होय ॥३१॥ तिण कारण करूं बीनती
For Private and Personal Use Only