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परदेशी राजाकी चौपाइ ।
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अठारमें बहु जेदो जी ॥ च० १३ ॥ जाण दुवों कीधा उपगारनो, बीसमें पर हितकारो जी | काम कार्य करै घणो तदितसुं, लबधिलपी बिस तारो जी ॥ च० १४ ॥ थोड़े कड़े पिण जाव जाने घो, इक विसमो गुण एमो जी । इत्यादिकश्रावक गुण दिपता, चित जणी गुण एमोजी ॥ चि०१५ सरधावंत गुण करि दिपतो, एहवो चित परधानो जी । दिते बिते दे युगतसुं, दिन २ चढ़ते वांनो जी ॥ चि० १६ ॥ जिन मारगनै घणो दिपावतो हिंसा धर्म दुरंतो जी । परचो बोडैबे पाखएक तनो बाद विवाद पडतो जी ॥ चि० १७ ॥ अतिचार लागा घालवतो, सूत्रमाहि बिसतारो जी। एहवा श्रावकना गुण बरव्या, सुणतां जयतां निसतारो जी ॥ च० १० ॥ ( दादा ) तिन अवसर सऊ जेटनो, जितसत्रु राजान | चित जणी ए तेड़िने बचन कदै बै बांन ॥ १५ ॥ जा तुं नगरी सेतं बिका लेई नेटो एह । परदेशी राजा जणी, पुहुंचावो ससनेह ॥ २० ॥ पगे लागणो माहरो, कहि राजाजी ने जाय । प्रमाण बचन चित करि जियो हाथ नेटो सहाय ॥ ११ ॥ चित जिहां थी
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