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जम्बु चरित्र ।
मुक्कर है निरधार । मुनिवर मारग डुक्कर जान यौवन बय मत करे सुजान ॥ ए ॥ ए मारग बूढ़ापन कही, जरा होय तव कोजो सही। मेरे घर रहिये मुनिराय, मुऊ शरीर धन बिलसो श्राय ७ ॥ अरणक रहे नार जव कही, नैन वैन विधानो सही । सुखे रहे साधू जब तिहां, काम लोग धन बिलसे जिहां ॥ १ ॥ श्रीगुरु कहें जंबू सुन बात, स्त्री मोह बहु बड़ा विख्यात । साहसीक नर कायर जया, नन्दिपेन वस्या पर गया ॥ ७२ काम देवकी शह परिवात, शास्त्र सिद्धान्त कही बिख्यात । वहु नर नारी के बसि रहा, श्री गुरु जम्बू सुं तव कहा ॥ ३ ॥ तिन अवसर अरणक की मात, नगर मादि फिरती बिख्यात । वाम १ सुत सोधेजही, अरणक पुत्र मिला नहि कहीं॥७४ बिरह शोक माता बहु धरे, व्याकुल चूत थ ते फिरे । अरषक २ करे पुकार, नगर माहि फिरती निरधार ॥ ५ ॥ फिरती साध्वी जिहां, गोख देव आई तव तिहां । ते साध्वी अरणक नी मात आवी ऊजी रही विख्यात ॥ ६ ॥ सुनी बचन माताकी जवें, अरण क हेग उतरे तवें । उतर)
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