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जम्बु चरित्र |
आभूषण सार । बहुत प्यार कर पोष्यो जवें, यन्त का राखें नहि तवें ॥ ए ॥ पूजा परव मित्र परवार, मात पिता जाइ सुत नार । कोप्यो काल जीवपर जवें, एसब राख न सकें तवें ॥ १ ॥ मसान तक पहुंचायें सही, परव मित्र थैसा जो कही | खारथके सब है परवार, सुद्ध चेतना उतरे पार || २ || ( दोहा ) निराधार जीवड़ा जया कोइ न खाया काम । धरम जुद्दार मित्र जव, जीव सहाइ ताम ॥ ९३ ॥ बरस मध्य इकवार जो, नाम धरमको लेत । सोइ धर्म इद जीवको, अविचल शिवसुख देत ॥ ए४ ॥ धरम मित्र सम को नही देख्या जगने जोय | बचे कालसुं जीवड़ा, धर्म सहाइ होय || ५ || धरम मित्रसुं प्यार है, कहि जम्बू सुन नार । तुमसब परवी मित्र हो, स्वारघिया निरधार || ६ || तुमसब अपने गरजके सको न काल बचाय । धरम मित्र जो मन बसे कहा करें जमराय ॥ ए७ ॥ ( चौपाइ ) जैस सिरी जु श्रातमी नार, जम्बूसुं कहती निरधार । मै नदि मानो तुम जो कही, जैसें द्विजपुत्री रही ८ ॥ कढ़ी रायसं कल्पित कथा, तैसे लामी
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