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सम्व चरित्र।
पर्व मित्र है, जुहार मित्र फिरजास ॥१॥ बहुत हेत नित मित्रसुं, कधी जुदा नहि पाय । खाना पीना पहरना, पहिले देके खाय ॥२॥ बार परब को दूसरो, मित्र बहु प्यार। तीजा मित्र जुहार को, मिलन सो व्योहार ॥ ३॥ (चौपाइ) राजा कोप्यो मंत्री साथ, पकड़ लाव उसको गहि हाथ चले पकड़ने नृपके दास, श्राया नाग मित्र के पास ७४ ॥ तव नित मित्रन आदर दियो, जाना कोप रायने कियो। उसे देख मुख टेढ़ा किया, घरके बाहर कादी दिया ॥५॥ परव मित्रके मंत्री गया बननेजी नहि कीन्ही दया। अपने घरसुं बाहर किया, निराधार होके मग लिया ॥ ६ ॥ मिले जुहार मित्रसुं जाय, श्रादर दियो बहुत अधिकाय घरमे राख दिलासा दिया, राय पास जश् श्ररजी किया ॥ ॥ गुन्हा माफ करायो जाय, फिर मंत्रीस्वर कीयो राय । बचा जीवसुं मंत्री ताम भरममित्र श्राया बहुकाम ॥ ७ ॥ दोन मित्रज शत्रू थया, जीव सुबुद्धि मंत्रीस्वर जया। जिसपर कोप किया जमराय, नित्य मित्र देह सङ्ग थाय हए ॥ जोजन करे बहुत परकार, पहर बसन
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