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धम्पु चरित्र
५४ ॥ नदी एक आई जब तिहां, पार जानेको नाव न जिदां । तव तस्कर राणीको कड़े, कपड़ा गहना जो तुक रहे ।। ५५ ॥ ते सब दिजे मुके उतार, मे रख श्राजं तटनी पार । पिछे तुक ले जाउं सड़ी, तबते राणी नागी रही ॥ ५६ ॥ (दोहा कपड़ा गहना चोरको, राणी दीया उतार । 'राणी तो नागी रही, चोर चला तब पार ॥ ५७ ॥ कहे चोर राणी सुनो, ए जङ्गलको जोय । यांदी तुं बैठि रहो, यवर सोधियो कोय ॥ २० ॥ भैसा कहके चोरटा, चला गया तब आप । नदी तीर राणी रही, करती महा बिलाप ॥ ५० ॥ फीलधान मरती समे, देखी त्रिया चरित्र । सुन परियामे से मुवा, हूवा देव पवित्र ॥ ६० ॥ हुवा महावत देवता, "उपजता ज्ञान बिसेष । यवधि करी जोयो तवें, पिछला जब तव देख ॥ ६१ ॥ ( चौपाइ राणीके प्रतिबोध न काज, तव सुर कियो वैक्रिय साज । जम्बूक रूप देवता किया, मास पिन्ड मुखमे तव किया ॥ ६२ ॥ नदी तीर राणी है जिदां जम्बूक जाके ऊजा तिहां । एतामे इक मंत्री जीव, जननुं बाहर पाये सदीव ॥ ६३ ॥ गी बड़
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