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जम्बु चरित्र ।
देख मास रख दिया, उह मबली को लेने किया वाया गिध मास लेगया, मबली तत्र पाणी मे गया ६४ ॥ इसी देख राणी तेवार, दोनु खोया मूर्ख गमार । गीदड़ कड़े सुजग सुन बात, मै तिर्यञ्च पशुकी जात ॥ ६५ ॥ मनुष होय तिनो को खोय तूं न हि दिलमे जाने सोय । राखी कड़े कौन तै तिन ते तुम जाषो बचन नवीन ॥ ६६ ॥ कड़े जम्बूक राणी सुन बात, राय महावत तस्कर जात । मुज वीतक कैसें तूं कदे, तुं क्या जाने कहां तूं रहे ६७ ॥ प्रगट कियो सुर अपना रूप, सुन्दर सोने अधिक अनूप | कहे महावतका हुं जीव, राणी लाजी याप सदीप ॥ ६० ॥ तव सुर कड़े जड़ सुन बात, तेरा दोष नदि विख्यात । एसब काम रु मोद बिकार, तूं मत लाजें आप विचार ॥ ६९ ॥ तंव राणी प्रतिबोधी सदी, सुनी बात देवत जो कही । दुइ साधवी राणी जवें, गया देव निज थानक तवें ॥ ७० ॥ स्वामी जैसा है इइ कथा तुमतो दीक्षा ब्योगे यथा । पि पिढें पछतावा सही राणी जिम मैं तुमसो कही ॥ ७१ ॥ सुनके जम्बू बेसा कही, ज्ञान बिना पछतावा सही। आगे
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