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अम्बु चरित्र ।
बन्दर हाय । मुफ आगल ते जापिये, प्राणनाथ तुम जोय ॥ ॥ जम्बू स्वामी तब व, जङ्गल वन विस्तार । बन्दर बन्दरो जोड़ ले, बले तिहां निरधार ॥ ए॥ बांदर तो बढ़ा दता, तरूण बांदरा एक । ते तो तव आयो तिहां, बूढ़ा कियो विवेक २०॥ बन्दर तो देखी तवें, बूढ़ा गया पलाय। परबत के खूहाण मे, ते तो लिपियो जाय ॥ ११ ॥ पानीकी बहु तिस लगी, पानी मिले न कोय । चहला ले १ देहमे, लगा लपेटन सोय ॥ १२ ॥ बारश से कीचको, बहुत खगावे तेह । धूप लगी तव सूखीया, उलटी जलती देह ॥ १३ ॥ मुख पाया ते कर्मसुं, बांदर सम हुँ नाहि । फसुन तृला कीचमे, जो मुख पाईं तांहि ॥ १४ ॥ असा मूरख मै नही, कामिन सुन मुझ वैन । चेतनता सुध कीजिये, पावे अविचल चैन ॥ १५ ॥ (चौपाइ तव ते बोली पञ्चम बाम, ताको महसेना है नाम खामी बहुत लोज मत करो, सिद्धी सम परतावो खरो॥ १६ ॥ जम्बू बोलें सिद्धी कौन, किम पुख पाइ जाषो जौन । स्त्री कहे एक कोश् ग्राम, सिद्धी वुद्धी रहे सुगम ॥ १७ ॥ दोनो त्रिया दलिखी
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