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जम्व चरित्र |
इक बिद्या है बिख्यात ॥ ८१ ॥ जिनसुं सुख पावोगे सही, स्वामी प्रमाण जो तुम कही । तद विद्याधर पैसा कहें, बचन हमारे जो सर दहें ॥ ८२ ॥ करो व्याद चन्डा लिन घिया, बाहिर गाम रहो ले त्रिया तिनसुं जोग मती तुम करो, ब्रह्मचर्य षटमासी धरो ॥ ८३ ॥ मन्त्र बताउं जपियो जाय, उठेमास मन्त्र सिध थाय । देवि चण्डाली परत होय तुमको बिद्या देवे सोय ॥ ८४ ॥ विद्या प्रजाव राज तुम करो, अनेक रायकी पुत्री बरो। चण्डाली का देखी रूप, दाव जाव करती जु अनूप ॥ ८५ ॥ तुम जो चूको उसके साथ, चूको तौ विद्यानदि हाथ सा कहिके दिar किया, विध समेत मन्तर
दियो ॥ ८६ ॥ विद्याधर किन्ही बहु दया विध बतलाय ठिकाने गया । ब्राह्मण पुत्र मन्त्र तव लियो, चण्डालनिसों निसपत कियो || ८५ ॥ बाहिर रहे गामके जाय, उद मन्तर जपे मनलाय
दिन ते चण्डालिन रमे, विद्यनमाली रातके इसमे ॥ ८० ॥ रूप देखके चूक्यो जवें, विद्या सिद्ध बनहि तवें । छोटा चात मेघरथ जहीं, ते तो व्रतसुं क्यों नहीं ॥ १९ ॥ विद्या सिद्ध न सत्र काज
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