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जम्बु चरित्र ।
राणी महायत सजाय, देश निकाला बीया गय जमते ५ श्राये किहां, पुर बाहर देवख रे जिहां ४६ ॥ सूना देवस तिहां न कोय, जिहां प्राय सूताई दोय । सेमे राजाका चोर, चोरी कर थाया ते गेर ॥ ७॥ पीले फोज रायका जवें बिपा चोर देवसमे तवें। चौकिदार जु बाहर रहे प्रात होय पकहुंगा कहे ॥ ४ ॥ तिहां महावत सूता सही, राणी जिहां जागती रही। श्राग चांदने राणी देख, एतो नरहै रूप विशेष ॥ ४॥ राणी पूढे तूं है कौन, किनकारण बैग है मौन । मै हूं चोर तुमीसो कहा, माके मारे में लिप रहा ५० ॥ मुके श्रादरें राणी कह।, तो मै तुके बचावं सह।। जो तुम कहो बचन परमान, कर उपगार बचावो जान ॥५१॥ प्रात दुवा राजाके लोग देवल बीच थाय संजोग । तस्करका राणकर गही, ए पति मेरा पैसा कही ॥ ५५ ॥ ए तुम चोर महावत जान, हम पंडी परदेशी प्राण । पकड़ महावत साये तिहां, राजाजी बैठेथे जिहां ॥५३ राय दिखाया सूजी तवें, जान महावत मूवा जवें राणी पनी चोरके मार, आगे जङ्गल है कन्तार
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