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जा चरित्र। । १७ जाउँ जवें, गहिला होके बूजो तवें ॥ २५ ॥ लोग देवता थडियो मुफे, एती बात कही मै तुफे, तव उनने असाही किया, सहूलोग देखत बू लिया शण ॥ नार गश् यक्षके पास, जोड़ी हाथ करे घरदास । पहिले गहिले बुवा श्रङ्ग, श्रवर पुरुष नहि किया प्रसङ्ग ॥ २५ ॥ जो मै फूठ कहूं एबात, तो तुल दाब रखो बिख्यात । नहितो मुझने दीजो
ने या कहि करजोड़ ॥ ३० ॥ जैसी बाद बडूने कार १. यक्ष चरणतुं निकली सही। रक्षा बिनाया की पात, दोय पुरुष कहती सियान ।। ३१ ।। सुनी बात नारीकी जवें, यह दे गोड़ी तवें. जाची न दोष सब गया, तव नुका ३२ ॥ उस दिनसो बुढा दिन रात, नीदना अचरिज बात । नगरीमे जाने सवकोय, देवदासको नीद न होय ॥ ३३ ॥ सुना अपने असा वैन, देवदत्त सोवें नहि रैन । राजा जी जय किरो बिचार, बड़े कामका जानि सुनार ३४॥ जनानी ज्योढ़ी है जो खास, चौकीदार करूं में तास । एतो जागे सारी रात, नूपति राख्यो ते विख्यात ॥ ३५ ॥ देवदत्त तव रहता तिहां, पट
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